हमारे पूर्व पुरुषों ने शताब्दियों पहले अंकों के महत्व को समझ लिया था। कीरो ने अपनी पुस्तक में स्वीकार किया है कि प्रागैतिहासिक काल में भारत के कुछ समुदाय के लोगों को अंक संबंधी गूढ़ विद्या का पूर्ण ज्ञान था। वे अंकों के अदृश्य गौरव और उनके सिद्ध ांतों द्वारा मानव जीवन पर होने वाले प्रभाव को मानते थे। वे लोग इस विद्या के आचार्य थे। ‘मध्यकालीन भारतीय संस्कृति’ नामक पुस्तक के लेखक ने लिखा है
‘भारत ने अन्य देशवासियों को जो अनेक बातें सिखाईं उनमें सबसे अधिक महत्व अंक विद्या का है। संसार भर में गणित, ज्योतिष, विज्ञान आदि की जो उन्नति पाई जाती है, उसका मूल कारण वर्तमान अंक–क्रम है, जिसमें 1 से 9 तक के अंक और शून्य, इन 10 चिह्नों से अंक विद्या का सारा काम चल रहा है। यह क्रम भारतवासियों ने ही निकाला और उसे सारे संसार ने अपनाया।’’ अंक शास्त्र के आधार पर अंक केवल 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 हैं।
ऐसे कई अंक हैं जिन्हें हमारे प्राचीन आचार्यों ने विशेष रूप से स्वीकार किया है। भारतीय दर्शन में अंक 7 का विशेष महत्व माना गया है। यह अंक आध्यात्मिक एवं रहस्यमय शक्तिसंपन्न है। 7 का महत्व इससे स्पष्ट हो जाता है कि हमारे यहां सात लोक, सात पाताल, सात पुरियां, सात समुद्र, सात स्वर, सप्त धातु, सात वार, सप्तऋषि, सूर्य के रथ के सात घोड़े, सात फेरे एवं रामायण में सात सोपान हैं। बाइबिल में सात के अंक को शुभ माना गया है। जैसे सात स्वर्ण, सात सिंहासन, सात गिरजाघर, डेविड से ईसा के जन्म तक सात पीढ़ियां, परमात्मा की सात आत्मशक्तियां, परमात्मा के सात दूतों का संसार में भ्रमण इत्यादि। मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ कुरान की प्रथम सूरत फातिहा में सात आयतें हैं।
इसी तरह अंकों के ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे। जन्मतिथि का मूलांक, भाग्यांक और नाम का संयुक्त अंक व्यक्ति के जीवन में न केवल अपने चारित्रिक गुणों को प्रभावित करते हैं, बल्कि उसके स्वास्थ्य, परिवार, आर्थिक स्थिति, पराक्रम, आवास–प्रवास, शहर या ग्राम निवास, देश–विदेश की यात्रा, भ्रमण, यौन सुख, व्यवसाय, आय–व्यय और भाग्य आदि के पक्षों को भी उजागर करते हैं। मूलांक कैसे ज्ञात करें मूलांक व्यक्ति के जन्म का दिनांक होता है यदि यह दो अंकों में हो तो उसे जोड़ कर जो संख्या आती है वही मूलांक कहलाता है।
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